All Posts By Samir

हाँ तुम एक कहानी हो

हाँ तुम एक कहानी हो एक कहानी जो मैंने बचपन में नहीं सुनी कभी किसी फिल्म में भी नहीं देखा जो कभी किसी किस्से में ही नहीं आया लेकिन एक दिन मेरे हिस्से में आ गया किचन की खिड़की से जैसे धुप आती हैं ना बिना बुलाये लेकिन पुरे अधिकार से जिसकी रौशनी से घर…

By Samir
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आओ चले थोड़ी सैर कर आये

आओ चले थोड़ी सैर कर आये उस पहाड़ी के उस पार गाँव से पहले एक चाय की टपरी हैं चलो तुम्हारी मीठी, मेरी फीकी चाय पी आये आओ चले थोड़ी सैर कर आये उलझ गयी हैं गुस्से में जो बातें जो मैं न समझा, जो तुम न कह पायी मन की सारी हलचल सारी कुंठा…

By Samir
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अनायास ही आज आ मिला मुझसे

एक बीती हुई सुभग स्मृति एक अतीत का सुखःद अहसास अनायास ही आज आ मिला मुझसे तुमने न जाने कहाँ से ढूंढा मुझे न जाने कैसे तुम्हे मैं स्मरण आया निश्चय ऐसा लगा कोई बचपन का गीत अनायास ही आज आ मिला मुझसे एक संदूक सी खोल दी तुमने जिसमे बरसो से बंद था वो…

By Samir
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इस साल का रेसोलुशन

तुम्हे एक बात बताऊं स्कूल में फेयरवेल पे तुमने जो साड़ी पहनी थी वो पिंक वाली, जिसके पल्लू के कोने पे मोतियों की लड़ी थी डांस करते समय कोने का एक मोती टूट गया था उस एक मोती के लिए लड़ाई हुई थी, उस टूटे मोती ने बहुतों की दोस्ती तोड़ दी थी फेयरवेल करवा…

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ख़ुदकुशी तो बस एक बहाना था

ख़ुदकुशी तो बस एक बहाना था हमे तो बस तेरी महफ़िल से दूर जाना था भागे बहुत दूर शहर गांव दरिया दरख्त जहाँ पहुंचे पाया वहां तेरा ठिकाना था पता था झूठे थे सब तेरे वादे तेरी कसमे मुझे तो मेरे हिस्से का बस सच निभाना था जिंदगी ऐसी बिना लिहाफ के हो एक सर्द…

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आज फिर बारिश हुई

आज फिर बारिश हुई कोई नाव नहीं बनाई फुटबाल भी नहीं खेला बारिश में चाय पकोड़े नहीं ढूंढे कुछ भी बचकाना नहीं किया जो मैं करता था जो करना मुझे पसंद था जिसके लिए मैं बारिश का इंतज़ार करता था चेहरे पे बुँदे अच्छी नहीं लगती पानी में छप छप परेशान करता हैं गीले कपडे…

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दर्द की तहे

ये दर्द की तहे मुझे समझ नही आती, जब भी लगता हैं उभर गए, उभर जाता हैं संभलते हैं जब भी उनके जाने के गम से बिछड़ा हुआ कोई दिल से गुजर जाता हैं ज़िन्दगी जब लेती हैं इम्तेहान समीर रात बीतती नही, न सहर आता हैं दर्द से भागें है हम उम्रभर, अब समझे…

By Samir
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मासूमियत का मरना जरूरी हैं

पता नही क्यों अब इस बात पे यकीन हो चला है कामयाबी के लिए मासूमियत का मरना जरूरी हैं हर थके मांदे को पानी पिलाना मुमकिन नही कुछ नेकियों का नजरअंदाज होना जरूरी हैं वो बढ़ गए जिनके लिये मैं रुक गया अपनी राह में समझा राहे-मंजिल में खुद गरजमंद होना जरूरी हैं पसंद नापसंद,…

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फिर वापस वो क्यों आये

अभी तो थोड़े सूखे थे कपडे, फिर ये बादल क्यों हैं छाए अभी तो संभले थे हम ज़रा सा, फिर वापस वो क्यों आये नहीं आती वफाये तुमको तो थोड़ी रवायतें ही सीखो तुमको जाना हैं तो पूरा जाओ किस्तों में हम क्यों मर जाये अब न होगा हमसे कुछ भी हमने सीखे अब नए…

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ये रात भी कट जाएगी

लगता हैं सब खत्म हो गया इस तिमिर के उस पार मेरे लिए अब कुछ भी नही कोई सुबह नही हैं मेरे लिए हर उम्मीद हैं कुचली दूर तक घुप्प अंधेरा, दम घोंटता सन्नाटा दिशाहीन मन, विचिलित हृदय , लगता हैं सब खत्म हो गया लेकिन लेकिन दूर कहीं एक रोशनी का सिरा मुझसे कह…

By Samir
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