लगता हैं सब खत्म हो गया
इस तिमिर के उस पार मेरे लिए अब कुछ भी नही
कोई सुबह नही हैं मेरे लिए
हर उम्मीद हैं कुचली
दूर तक घुप्प अंधेरा,
दम घोंटता सन्नाटा
दिशाहीन मन, विचिलित हृदय ,
लगता हैं सब खत्म हो गया
लेकिन लेकिन दूर कहीं एक रोशनी का सिरा
मुझसे कह रहा हैं चल
मत रुक ,
अगर दिख नही रहा तो टटोलते हुए चल
चल क्योंकि सुबह उनकी कभी नही होती जो रुक जाते हैं
सुबह उनके लिए हैं जो चलके रात के पार जाते हैं