अभी तो थोड़े सूखे थे कपडे,
फिर ये बादल क्यों हैं छाए
अभी तो संभले थे हम ज़रा सा,
फिर वापस वो क्यों आये
नहीं आती वफाये तुमको
तो थोड़ी रवायतें ही सीखो
तुमको जाना हैं तो पूरा जाओ
किस्तों में हम क्यों मर जाये
अब न होगा हमसे कुछ भी
हमने सीखे अब नए सलीके
बहुत उठाये हैं तेरे नखरे
अब हम खुद पे हैं इतराये
जीवन के जटिल उलझन में
अब ये बात समझ में आयी
खुद से प्यार जो न हो तो
साथ न देते अपने साये
आपके लिए तो चाहत हूँ मैं
पर खुद से खुद का वज़ूद हूँ
आपकी ख़्वाहिश पूरी होने को
कोई क्यों अपना वज़ूद गवाए
अभी तो थोड़े सूखे थे कपडे,
फिर ये बादल क्यों हैं छाए
अभी तो संभले थे हम ज़रा सा,
फिर वापस वो क्यों आये