ज़िन्दगी तेरे एक और पड़ाव को अब देखा मैंने
जिसे गोद मे खिलाया, उसे अब दूल्हा देखा मैंने
लगता हैं एक लंबा सफर तय हो गया समीर
वो शाख़ जो थी छोटी, उसे दरख्त होते देखा मैंने
वो जो अपनी माँ के आंचल में छिपता था
उसे किसी और के आँचल को धामते देखा मैंने
नही लेता था जो कोई भी जवाबदेही, जिम्मेवारी
उसे किसी की जिम्मेवारी लेते देखा मैंने
मेरी शादी में जिसने मेरा जूता हारा, खोया
उसके पैरों में शादी का जूता देखा मैंने
घूमता था पूरे घर मे चड्ड़ी में जो
मस्त शेरवानी में उसे सजता संवरता देखा मैंने
वो जो पहले मुझसे झिझकता था डरता था
उसके गुस्से से दुसरो को डरते देखा मैंने
ऐसा नही हैं कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ प्रवीर
पर अब तुझमें एक गबरू जवान देखा मैंने
ज़िन्दगी तेरे एक और पड़ाव को अब देखा मैंने
जिसे गोद मे खिलाया, उसे अब दूल्हा देखा मैंने