दिल तू रोज नई ज़ेर-बारी क्यों ले लेता हैं,
सदमे नही संभले पुराने, नए क्यों लेता है
वो जो खुद नही बदलते अपना सूरते-हाल
उनको बदलने की गल्फत तू क्यों लेता हैं
कशीदगी ही मिलती हैं काहिल की मदद में
बे-हिस हैं जो खुद से, उसकी फिक्र क्यों लेता हैं
दख़्ल-ए-मंज़िल नहीं हैं सबके मुक़द्दर में ये समीर
जज्बा नही हैं जिसमे, उसके मकसद क्यों लेता है
मर जाएगी एक दिन तेरे इमदाद की तबियत
सोचा जो न तूने ग़रज़-ए-मोहब्बत क्यों लेता हैं ।