ये दर्द की तहे मुझे समझ नही आती,
जब भी लगता हैं उभर गए, उभर जाता हैं
संभलते हैं जब भी उनके जाने के गम से
बिछड़ा हुआ कोई दिल से गुजर जाता हैं
ज़िन्दगी जब लेती हैं इम्तेहान समीर
रात बीतती नही, न सहर आता हैं
दर्द से भागें है हम उम्रभर, अब समझे
तकलीफों से गुजर कर ही हुनर आता हैं
दर्द ही लाता हैं सबको उसके दर पे
ख़ुशी में कौन उसके करीब आता हैं
अब तो कयामत के दिन ही सुकून होगा
उससे पहले कहाँ हमको आराम आता हैं