इम्तेहान-ये-इश्क़ में ये बदकिस्मती किसी को न मिले
बदनाम हूँ जिस यार से, उसका ही हुस्न मुझे याद नही
उनको आज भी याद है हर मुलाकात, हर जज्बात
और एक मैं हूँ सिवाय नाम के उनके मुझे कुछ याद नही
वो भी महफ़िलो में हंसकर कहते है कह दो की देर हो गयी
कब कहां से शुरू हुआ था ये किस्सा मुझे याद नही
अब तो छोटे भी मुस्कुराते हैं हँसते हैं मेरी उनकी बात पर
पर कब, क्या क्या हुई थी बातें, मुझे याद नही
अब मांगी हैं मैंने किसी रफ़ीक़ से उनकी हुस्नो-तस्वीर
कहीं मिल जाये तो कहना न पड़े की तुम मुझे याद नही